रायपुर के शान्ति सरोवर रिट्रीट सेन्टर में तीन दिवसीय गीता रहस्य प्रवचनमाला शुरू…

ब्रह्माकुमारी वीणा दीदी ने बतलाया कि जीवन एक संघर्ष है जिसमें व्यक्ति को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जो लोग चुनौती के वक्त सही निर्णय ले पाते हैं उनके लिए सफलता के द्वार खुल जाते हैं। जो लोग दुविधाओं में घिरे होते हैं वह असफल रह जाते हैं। ऐसे तनाव, हताशा और निराशा से बाहर निकालने में गीता बहुत मददगार सिद्घ हो सकती है। गीता सिर्फ धर्मशास्त्र नहीं है वरन जीवन जीने की कला है। इसलिए इसे मृत्यु के लिए नहीं अपितु जीने के लिए सुनने की जरूरत है। अगर युवावस्था में गीता सुनेंगे तो बुढ़ापा मुश्किल नहीं रहेगा। बचपन में सुनेंगे तो जीवन सुनहरा हो जाएगा। बुढ़ापे में सुनेंगे तो कुछ नहीं कर पाएंगे।
ब्रह्माकुमारी वीणा दीदी ने कहा कि गीता पढ़ते समय मन में प्रश्न उठता था कि इतना श्रेष्ठ ज्ञान क्या एक अर्जुन के लिए था? नहीं यह ज्ञान सारी मानव जाति के लिए है। श्रीमद् भगवद् गीता स्वयं भगवान के श्रीमुख से सुनाई गई ऐसी ज्ञान निधि है जिसको धारण करने से जीवन खुशहाल बन जाएगा। गीता में कुल सात सौ श्लोक हैं उन सबकी चर्चा तीन दिन में करना सम्भव नहीं है इसलिए हम सिर्फ उन्हीं की चर्चा करेंगे जो कि खुशहाल जीवन के लिए जरूरी हैं।
उन्होंने बतलाया कि रूस में शासन ने यह कहते हुए कि यह हिंसा को प्रशस्त करता है गीता पर प्रतिबन्ध लगा दिया था लेकिन जब हमारे उच्चायोग के लोग वहाँ के कोर्ट में गए तो कोर्ट ने प्रतिबन्ध को खारिज करते हुए कहा कि गीता एक जीवन पद्घति है और किसी के जीवन पद्घति पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया जा सकता है। गीता में कहीं पर भी युद्घ की कला नहीं सिखायी गई है। अर्जुन की समस्या सामाजिक समस्या थी। वह दुविधा में उलझा हुआ था। उनसे बाहर निकलने का रास्ता गीता के माध्यम से भगवान ने उसे बताया। समस्याओं को जीतने और उनसे निकलने का समाधान हमें गीता से मिलता है। इक्कीसवीं सदी में सबसे बड़ी समस्या पहचान की समस्या है। हम नहीं जानते हैं कि हम कौन हैं? हम लोग गीता को पढ़ते रहे किन्तु उसे जीवन में नहीं उतारा। सिर्फ पढऩे से नहीं बल्कि गीता में बतलाए गए मार्ग पर चलने से सुखी बनेंगे।
उन्होंने कहा कि भगवान ने गीता ज्ञान भारत में दिया। हम सब कितने भाग्यशाली हैं जो कि इस महान देश में हमारा जन्म हुआ। गीता को सिर्फ सुनना नहीं है बल्कि उसे समझना और धारण करना है। आज से तीन दिन हम सब अर्जुन अर्थात ज्ञान अर्जन करने वाला बनकर ज्ञान सुनेंगे और जीवन को खुशहाल बनाएंगे। समाज में रहते खुश रहना चाहते हैं तो आध्यात्मिकता को सहारा बनाने की जरूरत है। अर्जुन के मन में जो व्याकुलता और दुविधा थी वह भगवान की बातों को सुनकर दूर हो गई। भगवान ने बतलाया कि तुम इस शरीर को चलाने वाली चैतन्य आत्मा हो। आत्मा अविनाशी है। आग, पानी आदि कुछ भी इसका विनाश नहीं कर सकते। शरीर पुराना होने पर इसे छोड़कर तुम चले जाओगे। इसे मृत्यु कहते हैं। फिर तुम्हे नया शरीर धारण करना पड़ेगा। उसे जन्म कहते हैं। जो जन्म लेता है उसे एक दिन शरीर छोड़कर जाना ही पड़ता है। इसलिए शोक मत करो। यह चक्र है इससे कोई छूट नहीं सकता।
उन्होंने बतलाया कि ईश्वर ने हमें करोड़ों रूपयों का कीमती शरीर दिया है। घुटनों में समस्या हो जाए तो पांच-पांच लाख इसको बदलने में खर्च हो जाते हैं। आँख की सर्जरी करानी पड़ जाए तो पचास-पचास हजार खर्च करने पड़ते हैं। हार्ट की बिमारी होने पर दस-पन्द्रह लाख तक खर्च हो जाता है। ब्रेन की सर्जरी, किडनी और लीवर आदि में भी लाखों -लाखों का रूपया खर्चा आता है। लेकिन इतना मूल्यवान शरीर के होते हुए भी आत्मा के निकल जाने पर यह शरीर कुछ काम का नहीं रह जाता है। इसकी कोई कीमत नहीं रह जाती। लोग इसे तुरन्त श्मसान घाट ले जाकर जला देते हैं। आत्मा के रहते तक ही शरीर की कीमत है। फिर लोग किस बात पर इतना इतराते हैं? आत्मा जब शरीर छोड़ती है तो अपने साथ किए हुए कर्मों का फल साथ लेकर जाती है इसलिए हमें अपने कर्मों का ध्यान रखना चाहिए। कभी किसी को दुखी मत करो। सबको सुख दो तो सुखी रहेंगे।
उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य होना चाहिए कि हम ज्ञानी बनें। ज्ञानी बनने के लिए समझना होगा कि मैं कौन हूँ? मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है? मैं इस धरा पर क्यों आया हूँ? गीता में भगवान ने कहा कि तुम चेतन हो, अविनाशी हो। आत्मज्ञान को समझने से दूसरों में अच्छाई देखने की समझ मिलती है। आजकल हम लोग सबके अन्दर अवगुण देखने लगे हैं। भगवान ने हमें आँखें अच्छाई को देखने के लिए दी हैं लेकिन हम सभी की बुराई देखते-देखते खुद भी बुरे बन गए हैं। प्रेम, शान्ति, आनन्द, पवित्रता आदि हम आत्माओं के धर्म हैं। इन्हें देखो और अपनाओ। काम, क्रोध, लोभ आदि नर्क के द्वार हैं। इनसे किसी का उत्थान नहीं हो सकता है इसलिए इनका त्याग करना चाहिए। गीता में जो राजयोग का वर्णन है उसके अभ्यास से हम काम, क्रोध आदि मनोविकारों पर काबू पा सकते हैं। गीता बार-बार कहता है कि स्वधर्म में रहो और विकारों का त्याग करो।