धर्म-आध्यात्म

गीता ज्ञान महोत्सव : आत्मदर्शन से बनेगा आनन्दमय और खुशहाल जीवन :- ब्रह्माकुमारी वीणा दीदी

रायपुर, 5 जून 2025: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय द्वारा विधानसभा मार्ग पर स्थित शान्ति सरोवर रिट्रीट सेन्टर में आयोजित गीता ज्ञान महोत्सव के तीसरे दिन ब्रह्माकुमारी वीणा दीदी ने कहा कि हमें अब ज्ञान का महोत्सव मनाना है। भगवान को ज्ञानी व्यक्ति सबसे अधिक प्रिय है। ज्ञानी व्यक्ति सबसे महान है। ज्ञानी व्यक्ति उसे कहते हैं जो कि सुने, समझे और उस पर अमल भी करे। हम उस रास्ते पर चलें जिस पथ पर भगवान हमें गीता के माध्यम से लेकर जा रहे हैं।

ब्रह्माकुमारी वीणा दीदी कहा कि दुखी, अशान्त और परेशान मानव मन को सुखी, शान्त और समाधानचित्त बनाने के लिए भगवान ने गीता में हमारा मार्गदर्शन किया। हम खुद को भूले हुए थे और गलत रास्ते पर चल रहे थे। गलत सोच रख रहे थे उससे बाहर निकलकर अपने आपके बारे में सही सोचना सिखाया। हरेक के शरीर में चेतना (आत्मा) है। शरीर की चमड़ी का रंग कैसा भी हो लेकिन सभी की आत्मा एक जैसी है। सब शरीर को देख रहे हैं चेतना को कोई नहीं देख रहा है? इसीलिए भगवान ने हमें देह के भान को भूलाकर चेतना को देखने के लिए प्रेरित किया। उस चेतना के कारण ही जीवन है। उसके कारण ही दुनिया है। इसलिए गीता के ज्ञान द्वारा पहला ज्ञान हमें मिला कि चेतना को देखो।

ब्रह्माकुमारी वीणा दीदी कहा कि आज हमने दुनिया को देखना सीख लिया लेकिन खुद को देखना नहीं सीखा। आईने में खुद को देखते भी हैं तो शरीर को देखते हैं। गीता ज्ञान दाता ने खुद से मिलाते हुए अपने आप (परमात्मा) से मिलाया। परमात्मा ने बहुत सुन्दर अपना परिचय दिया। वह परमात्मा जो सर्वशक्तिवान हंै। जिसके लिए हम सदियों से सुनते आए कि उन्हें देखना मुश्किल है। इन चर्मचक्षुओं से उन्हें नहीं देख सकते हैं। परमात्मा को देखने के लिए दिव्य नेत्र चाहिए। वह दिव्य नेत्र है ज्ञान का नेत्र जिसको तीसरा नेत्र भी कहते हैं। जब हम खुद को पहचान लेते हैं तब परमात्मा को पहचानना आसान हो जाता है। जैसे हम आत्माएं ज्योतिबिन्दु हैं वैसे ही हमारे पिता परमात्मा भी अतिसूक्ष्म ज्योतिबिन्दु हैं। ज्ञान के नेत्र से हम परमात्मा को पहचान पाते हैं।

उन्होंने कहा कि जैसी हमारी भावना होगी वैसी दुनिया दिखेगी। अब हमें अपने अन्दर बदलाव लाने की जरूरत है। अपनी सोच और दृष्टि में परिवर्तन करना होगा तब दुनिया बदलेगी। भगवान ने गीता में खुद को बदलने के लिए हमें योग सिखलाया है। योगी बनने का आशय यह नहीं है कि सब कुछ छोड़कर बैठ जाओ। भगवान ने हमें कर्मयोग सिखलाया है अर्थात कर्म करते हुए योग करना। हर कर्म भगवान की दी हुई ड्यूटी समझकर करना। घर की सफाई कर रही हूँ तो साथ-साथ मन की भी सफाई कर लो। खाना पकाते हुए विचार करो मैं शरीर के पोषण के लिए खाना बना रही हूँ वैसे मन का भोजन अच्छे विचार हैं। सबके लिए शुभ संकल्प करो। ऐसे कर्म करते हुए योग करना यह भगवान ने हमें सिखलाया।

उन्होंने कहा कि भगवान ने ऐसी दैवी दुनिया बनाने के लिए मनुष्य आत्माओं को गीता का ज्ञान दिया जहाँपर हमारा सोचना, बोलना और कर्म करना तीनों में समानता होगी। भगवान ने पहले आत्मा का परिचय कराया फिर खुद अपना (परमात्मा) का परिचय दिया। ज्ञान का चश्मा पहनो, ज्ञान की दृष्टि से देखो तो हमारा जीवन खुशहाल बन जाएगा। ज्ञानवान की सोच विशाल हो जाती है। गीता के पन्द्रहवें अध्याय में परमात्मा ने बतलाया कि यह मानव सृष्टि एक वृक्ष की तरह है। इस वृक्ष का मूल मैं उपर में हूँ और उसकी शाखाएं नीचे है। जो इसको जान लेता है वह चारों वेदों को जान लेता है।

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