हर वर्ष जलाने के बाद भी रावण मरा नहीं है हमारे अन्दर जि़ंदा है…ब्रह्माकुमार भगवान भाई
छत्तीसगढ़/रायपुर : हम सभी हर साल दशहरा में रावण का बुत बनाकर उसे जलाते है। इसका मतलब है कि वह मरता नहीं है। बल्कि रावण का पुतला हर साल बड़ा होता जा रहा है। दशहरा में रावण का पुतला तो जल जाता है लेकिन असली रावण हमारे अन्दर जिन्दा है। वास्तव में मनोविकार ही वह रावण है जो कि प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, नफरत, घृणा, द्वेष, वैर आदि रावण के दस सिर हैं। जब तक इन दसों मनोविकारो पर जीत नहीं पायेंगे तब तक असली विजयादशमी नहीं मना सकेंगे।
यह विचार माउण्ट आबू से पधारे ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने व्यक्त किया। वह प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के शांति सरोवर रिट्रीट सेन्टर में आध्यात्मिक ज्ञान द्वारा संस्कार परिवर्तन विषय पर बोल रहे थे। वह भारत और नेपाल के 11000 (ग्यारह हजार) से अधिक स्कूलों और 900 (नौ सौ)से अधिक कारागारों (जेलों) में नैतिक मूल्यों की शिक्षा दे चुके हैं जिसके फलस्वरूप उनका नाम इंडिया बुक ऑफ रिकाड्र्स में दर्ज है।
उन्होंने आगे कहा कि सभी विकारों का मुखिया है देहभान जब तक हम स्वयं को आत्मा निश्चय कर परमात्मा से योग नहीं लगाते तब तक इन मनोविकारों पर जीत पाना संभव नही है। वर्तमान समय परमपिता परमात्मा सहज राजयोग और अध्यात्मिक ज्ञान द्वारा इन मनोविकारों पर जीत पाने की शिक्षा ब्रह्माकुमारी बहनों के माध्यम से दे रहे है। अपनी कमज़ोरियों पर जीत हासिल करना ही मानव मन में बसे रावण की नकारात्मक प्रवृत्तियों को खत्म करने का एकमात्र तरीका है। उन्होंने बतलाया कि जब हम काम, क्रोध व मोह को खत्म कर पाएंगे, तब ही दशानन का खात्मा होगा। इन बुराइयों पर विजय हासिल करके ही असली दशहरा मना सकेंगे। उन्होंने बतलाया कि आज मनुष्य काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, आलस्य, भय, लापरवाही, घृणा और ईर्ष्या जैसी बुराइयों का गुलाम हो गया है। ये सभी दसों बुराइयां रिश्तों में कलह और दुनिया में हिंसा का कारण बन रही हैं। उन्होंने बतलाया कि रावण आज हर एक मानव के अंदर विराजित है। जब हम अपने अंदर के रामत्व अर्थात अच्छाइयों को जागृत करेंगे तो ही हम उन मनोविकारों पर विजय प्राप्त कर पाएंगे?
इस अवसर पर ब्रह्माकुमारी किरन दीदी ने बीके भगवान भाई का परिचय दिया। प्रारम्भ में ब्रह्माकुमारी अदिति और स्मृति दीदी ने उनका स्वागत किया। कार्यक्रम के अंत में ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने विकारों पर जीत पाने के लिए राजयोग मेडिटेशन का अभ्यास कराया और बतलाया कि मेडिटेशन से हमारी कर्मेन्द्रियाँ संयमित होती हैं जिससे हम तनाव मुक्त और विकार मुक्त बन सकते है।